सीकर शहर को घेरता दलदल

डॉ. नीरज मील

        

शहर की बसावट बेतरतीबी वाली है या सुव्यवस्थित! अगर यह देखनी है तो हमें

शहर के चारो ओर पानी  फैला हुआ है या नहीं यह जानना महत्वपूर्ण होता है। अगर जल जीवन है तो सीवेज इस जीवन की असली कहानी कहता है। अपनी जरूरतों के लिए कैसे हमारे शहर पानी सोख रहे हैं दलदल तैयार कर रहे हैं। शहरों के पानी के बारे में जानना हो तो सिर्फ इतना पूछना जरूरी होगा कि हमारे शहर पानी पाते कहां से हैं और उनका सीवरेज जाता कहां पर है? लेकिन पानी सिर्फ इस एक सवाल जवाब का सवाल नहीं है। सिर्फ प्रदूषण और बर्बादी का भी मसला नहीं है। मसला यह है कि

हमारे शहर किस तरह से विकसित हो रहे हैं? इसमें हमारे किसी भी योजनाकार को कोई शक नहीं है कि शहरीकरण जिस गति से बढ़ रहा है उसमें और अधिक तेजी आयेगी। लेकिन इस तेज गति से बढ़ते शहरों को पानी कहां से मिलेगा और वे अपने सीवरेज का निष्पादन कैसे करेंगे?

क्या वर्तमान में शहरों में फैली हुई गंदगी शहरी व्यवस्था को बकवास साबित करने वाली नहीं है? वैसे हिदुस्तान गाव-गणतंत्र की अपनी प्राचीन पहचान लिए हुए है, हालांकि आज बहुत से गाँव अपने वजूद के लिए जद्दोजहद में हैं। शिवसिंहपुरा सीकर शहर के सबसे ज्यादा नजदीकी वाला गाँव है लेकिन अब इस गाँव के कई हिस्सों को शहर निगल चुका है।

हालांकि इस गाँव की जमीं पर कई सरकारी कार्यालय यथा-भ्रष्टाचार निरोधक, जिला उपभोक्ता मंच, बिजली विभाग, स्वास्थ्य भवन, आबकारी कार्यालय, सैनिकों की पोलिक्लिनिक, राजस्थान हाउसिंग बोर्ड एवं प्रदूषण

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नियंत्रक कार्यालय आदि कई खुले हुए हैं लेकिन इसके विकास की तो दूर की बात है बल्कि यहाँ के निवासियों के लिए करीब 15 साल से अभिशाप बना है यहाँ अवस्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं हाउसिंग बोर्ड के कार्यालय के बीच जमा दलदल। इस दलदल की वजह से स्थानीय निवासियों को ख़ासी समस्या हो रही हैं। जब ख़बर गवाह मौके पर पहुंचा तो कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये। स्थानीय निवासियों का कहना है कि एक तो ये पानी हाउसिंग बोर्ड के निवासियों का आ रहा और इसके दुष्परिणाम हम भुगत रहे हैं। दलदल के किनारे रहने वाले ग्रामीणों का कहना है “जब बरसात होती है तो यही नरक(गंदगी पानी में बहकर) हमारे घरों में आ जाता है और हमारा जीना ही दूभर हो जाता है। इसके अलाव जब हवा बहती है तो साथ में भयंकर गुर्गंध भी आती है जिससे श्वास लेना भी दूभर हो जाता है, मक्खियों एवं मच्छरों की के तो कहने ही क्या?” जब ख़बर गवाह ने इस सम्बन्ध में शिकायत की बात की तो पता चला इस ओर सब देख कर आँखे मूँद लेते हैं।

समस्या कब से है और कैसे बनी?

मुद्दे की तहतक जाने के लिए गाँव वालों से पूछताछ की तो पत्ता चला कि करीब 15 साल पहले नरेगा में ये खड्डा खुदवाया था और उसके बाद हाउसिंग बोर्ड आया तो उसका गंदा पानी यहीं निकालने का काम शुरू हुआ और लोगों के जीने के अधिकार को भी ख़त्म करने पर उतारू है। गाँव के लोगों का कहना है कि यहाँ जिला कलेक्टर तक सब आ गए लेकिन स्थिति आज भी वही ढ़ाक के तीन पात वाली है। अब तो गाँव वालों को भी लगने लगा है कि इस पानी की निकासी शायद ही हो पाए! पानी के अन्दर प्लास्टिक, अपशिष्ट आदि बहुत ज्यादा है जिस वजह से कई बार पशु भी इसमें फंस जाते हैं और मर जाते हैं जिसका दुष्परिणाम भी आसपास के लोगों के लिए ही होता है। कुल मिलाकर अब लोग इस गंदगी से बहुत परेशान हो चुके हैं और उनका गुस्सा कभी भी फूट सकता है। एक महिला ने कहा कि प्रशासन हमारी परीक्षा न ले और समय रहते इसका स्थाई समाधान कर दें अन्यथा परिणाम गंभीर होंगे।

 

गवाह का फोकस

वस्तु स्थिति के अनुसार क्षेत्र के लोग इन दिनों प्रशासनिक अधिकारियों व राजनेताओं की उपेक्षा का शिकार हो रहे है। गांवो इस कीचड़ व गंदगी के कारण लोग बेहद परेशान है। इसके कारण ग्रामीणों का जीना अभी से ही मुश्किल हो रहा है। बारिश के समय में तो आसपास के घर तालाब में तब्दील हो जाते है।

गांव के युवा, बुजुर्ग एवं महिलाओं ने आरोप लगाया कि चुनाव के समय तो नेता वोट मांगने के लिए आ जाते हैं। और उस समय बड़े-बड़े वादे कर सभी समस्याओं को दूर करने की बात कहते हैं लेकिन जीतने के बाद गांव की तरफ कोई रुख नहीं करता और ग्रामीणों को अपने हाल पर जीने के लिए छोड़ देते हैं। प्रशासन के लोगों को भी समस्या से कई बार अवगत कराया जा चुका है लेकिन प्रशासनिक अधिकारी भी कोई ध्यान नहीं दे रहे तो वही ग्राम पंचायत भी बजट नहीं होने का हवाला देकर काम नहीं करवा रही है।

ग्रामीणों ने बताया कि गंदे पानी की वजह से उनके बच्चे एवं बुजुर्ग बीमारियों से परेशान हो चुके हैं। उनकी आधी कमाई तो परिवार के बीमार सदस्यों को ठीक कराने में ही खर्च हो रही है। आखिर में ग्रामीणों के पास आंदोलन का ही एक रास्ता बचा है।


                              गवाह की दखल

शिवसिंहपुरा का दलदल अपनी गंदगी और बदबू के कारण जाना जाता है। 15 साल के हुए इस दलदल के माध्यम से अब आबोहवा सीकर शहर के शर्म की कहानी ही कहती है। अब प्रशासन को शर्म करने की जरूरत है और ये दलदल आज इतनी गंदीगी हो चुका है कि इसे अब अभिशाप के रूप में देखा जाता है। साफ सुथरे गाँवों में भी अब गंदा दलदल भेंट करने पर भी क्या हमें किसी प्रकार की कोई शर्म आती है? क्या हमें कभी आश्चर्य होता है? हम अपने शहरी घरों और शहरी उद्योगों इसी तरह गन्दा पानी निकालते हैं। अच्छी खासी साफ सुथरी जगहों को अपने स्पर्श से हम गन्दगी में तब्दील कर देते हैं। क्या हम शहरी लोग कभी इस बारे में सोचते हैं? अगर अब तक हमने नहीं सोचा तो अब हमें सोचने की जरूरत है। अभी भी हमने अपने पानी के व्यवहार के बारे में नहीं सोचा और इसी तरह से गाँवों को दलदल भेंट करते रहे तो बाकी बचे हुए गाँव शहरों से अपना मुंह मोड़ लेंगे। क्या हम चाहते हैं कि नानी बीहड़ के बाद शिवसिंहपुरा और इसके बाद जगमालपुरा, भादवासी, सांवली, चंदपुरा, गोकुलपुरा, पुरा की ढाणी और कुडली, कटराथल में भी इसी इसी तरह बदसूरत करते जाएँ और आने वाली नस्लें इन्हें देखे? क्या हम अपने आनेवाली पीढ़ियों को यही भविष्य देना चाहते हैं?

       सरपंच का बयान

कुछ जमीं यूआईटी की है और कुछ ग्राम पंचायत शिवसिंहपुरा की और पानी आ रहा है आवासन मंडल का। एक तो आवासन मंडल इस पानी को इधर भेजने से रुके एवं दूसरा प्रशासन भी इस बाबत काम करे। यह सच है कि लोग इस पानी के दलदल की वजह से न केवल बीमार हो रहे हैं बल्कि उन्हें श्वास लेने भी बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मैं मेरी ओर से पूर्ण प्रयास कर चुका हूँ लेकिन कोई फ़ायदा हुआ नहीं, प्रशासन के जू ही नहीं रेंग रही है। बिना प्रशासन की मदद के मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता।”

महावीर प्रसाद सैनी, सरपंच शिवसिंहपुरा

 


              प्रदूषण नियंत्रक अधिकारी से सवाल-जवाब

मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए ख़बर गवाह की टीम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यालय पहुंची और वहाँ उपस्थित क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी नीरज शर्मा से सीधे सवाल किये (बातचीत के अंश...)

गवाह :शिवसिंहपुरा में आपके कार्यालय के सामने ही इस तरह का प्रदूषित पानी है ऐसे में क्या कहेंगे आप

अधिकारी – ये प्लौट यूआई के अधिकारक्षेत्र में है ऐसे में यूआईटी ही पानी निकासी का कुछ व्यवस्था करे ताकि सिवेरेज का पानी बाहर निकल सके। हालांकि ये कोई इंडस्ट्रियल वेस्ट नहीं है। इसका निकास ही इस समस्या का समाधान हो सकता है।

गवाह : गाँव वालों के हिसाब से ये पानी भराव पिछले 15 सालों से और आप भी यहाँ रोज आते-जाते इसे देखते होंगे! ऐसे में एक सवाल है कि “क्या इस तरह का भराव प्रदूषण फैलाने वाला अपराध नहीं है? क्या कहेंगे आप?

अधिकारी – इस सम्बन्ध में हमने नगर परिषद् को लिखा था और ये पानी बरसाती एवं सीवरेज का पानी है। सामान्य प्रशासन एवं नगर परिषद के स्तर पर जब तक इस पानी की निकासी को लेकर कोई प्रोजेक्ट तैयार नहीं होता तब तक समाधान हो जाए ऐसी कोई संभावना नज़र नहीं आ रही।

गवाह : क्या ये प्रदूषण फैलाने वाले कारकों में नहीं है?

अधिकारी – ये पानी का स्टोरेज,डोमेस्टिक वेस्ट है और गंदा पानी तो प्रदूषण फैलाने वाला होता है। इसका समाधान पानी की निकासी से ही संभव हो पायेगा।

गवाह :  आपने इस सम्बन्ध में कितनी बार सम्बंधित को लिखा है और क्या कार्रवाई की है?

अधिकारी – हां, हमने करीब 2-3 पत्र इस सम्बन्ध में जरुर लिखे हैं लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

गवाह टिपण्णी –

प्रदूषण अधिकारी लाचार नज़र आये और मूल बात से दूरी बनाते रहे।

                         

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