Dotasara & Beniwal ki zung, Kaun Padega Bhari?|खींवसर में कौन पड़ेगा भारी?|KhabarGawah|RLP|PCC_CHIEF|

 गोविन्द, हनुमत दोउ लड़ें, 

किसकी होगी जीत।

जय थारी हनुमान जी,

करी संघर्ष से प्रीत।।

कुछ ऐसे ही पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है लेकिन सवाल यह है कि क्या खींवसर विधानसभा सेट को लेकर हनुमान बेनीवाल और पीसीसीचीफ गोविंद सिंह डोटासरा के बीच तकरार इतनी बढ़ चुकी है? क्या दोनों ही एक दूसरे को नीचे दिखा रहे हैं? इस कवर स्टोरी में हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे कि क्या गोविंद सिंह डोटासरा और हनुमान बेनीवाल के बीच बहुत कुछ अलग चल रहा है? हनुमान बेनीवाल और गोविंद सिंह डोटासरा के बीच थोड़े समय पहले चले आपसी बयानों को लेकर यह बयानबाजी चल रही है कि दोनों के बीच तकरार है क्या वाकई तकरार है? कुछ लोगों का मानना है कि पिछले कुछ समय से दोनो नेता ही एक दूसरे को निशाने पर लिए हुए हैं जिस को लेकर काफी विडियो वायरल भी हो रहे हैं। और इसी तरह के कुछ बयान है जिनकी वजह से यह माना जा रहा है की गोविंद सिंह डोटासरा और हनुमान बेनीवाल के बीच तकरार है लेकिन क्या वास्तव में तकरार है? अगर है तो किस वजह से है? 

                     

फिलहाल हो रहे उपचुनाव की बात की जाए तो सुनने में यह आ रहा है कि हनुमान बेनीवाल ने इन उपचुनाव में तीन सीटों की मांग की थी। वैसे देखा जाए तो हनुमान बेनीवाल के पॉइंट ऑफ़ व्यू से देखें तो यह डिमांड नाजायज भी नहीं थी। क्योंकि हनुमान बेनीवाल की पार्टी से अगर कांग्रेस गठबंधन कर लेती तो फायदे में रहती। एक कारण यह है कि कुछ सीटों पर हनुमान बेनीवाल 25 से 30 हज़ार वोटों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं और दूसरा कारण यह है कि अगर भाजपा ये सारी सीट हार भी जाए तो सरकार गिर जाए ऐसी कोई बात नहीं होगी और अगर कांग्रेस सभी सात सीटें जीत भी ले तो सरकार बना लेगी ऐसी स्थिति में नहीं आ पाएगी लेकिन गठबंधन से चले तो फायदा जरुर हो जाता, खैर कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों की तरह ही उपचुनावों में भी अतिआत्मविश्वास या आत्मविश्वास के चलते हो लेकिन सच यही है कि गठबंधन नहीं किया। हालांकि अगर कांग्रेस गठबंधन करती तो निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए यह लाभदायक सिद्ध होता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हनुमान बेनीवाल, बाप, सीपीआईएम आदि से गठबंधन किया और राजस्थान की 25 सीटों में से गठबंधन को 11 सीट मिलना साफ-साफ फायदा दर्शाने वाला है। इसी वजह से  कुछ विश्लेषकों का सीधा मानना है कि उपचुनाव को लेकर अगर कांग्रेस में थोड़ी बहुत भी अक्ल होती तो वह निश्चित तौर पर इंडिया एलाइंस को आगे जारी रखती।

अब बात करते हैं आपसी अदावतगी की, यह जानने के लिए थोड़ा गौर कीजिएगा, थोड़ा सा पीछे चलते हैं। जब 2023 के दिसम्बर में विधानसभा चुनाव हुए थे तब हनुमान बेनीवाल ने लक्ष्मणगढ़ विधानसभा से एक ऐसे उम्मीदवार को टिकट दी थी जो बेशक छात्र राजनीति से जुड़ा हुआ था, नौजवान था। लेकिन क्या इस तरह से चुनाव लड़ने के पीछे  हनुमान बेनीवाल का उद्देश्य गोविंद सिंह डोटासरा के खिलाफ था? थोड़ी गहनता से अध्ययन करें तो ज्ञात होगा कि यह चुनाव वाकई गोविंद सिंह डोटासरा के खिलाफ नहीं बल्कि गोविंद सिंह डोटासरा के पक्ष में था क्योंकि जो कैंडिडेट हनुमान बेनीवाल ने खड़ा किया था उसने जितने भी वोट बटोरे वह भारतीय जनता पार्टी के ही वोट थे, गोविंद सिंह डोटासरा के वहीं। दूसरी ओर बेनीवाल ने जो कहा वो नैतिक तौर पर सही भी है कि “रुमाल हिलाकर नाचने से लोगों का भला नहीं होता, उसके लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है।”

इस उप चुनाव में कांग्रेस को खींवसर से देखा जाए तो जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनावों में फतेहपुर से एक नौसखियां को टिकट दी थी ठीक उसी तरह से खींवसर कांग्रेस द्वारा दी गई टिकट में कैंडिडेट को नौसखिया ही माना जा रहा है और बड़े अर्थों में उसे डमी कैंडिडेट ही कहा जा रहा है क्योंकि जो राजनीतिक परिदृश्य है वह किसी से छुपा हुआ नहीं है। हालांकि जिस क्षेत्र के उम्मीदवार हैं वो बेनीवाल के वोटों का गढ़ माना जाता है इन सब के बावजूद इस खींवसर सीट पर हो रहे उपचुनाव में डोटासरा वर्सेस बेनीवाल देखा जाए तो गोविंद सिंह डोटासरा ने किसी भी प्रकार का क्लू प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अभी तक नहीं दिया है जिससे यह साबित हो सके की हनुमान बेनीवाल के खिलाफ गोविंद सिंह डोटासरा खड़े हैं। लेकिन एक बात यहां गौर करने वाली यह भी है की खींवसर विधानसभा, जिसकी रग-रग से हनुमान बेनीवाल वाकिफ है वहीँ दूसरी ओर रेवंतराम डांगा जो कभी हनुमान बेनीवाल के खास थे आज फिर से उनके सामने हैं लेकिन राजनीति में यह चीज चलती रहती हैं और राजनीति में कब किसको सपोर्ट कर जाए यह भी एक बड़ा विषय है। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद हनुमान बेनीवाल जिस तरह से एक परिपक्व नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं उसे यह साबित होता है कि हनुमान बेनीवाल कच्ची गोलियां नहीं खेलते। राजनीतिक अनुभव उनमें लगातार प्रखरता ला रहा है और इस राजनीतिक प्रखरता और अनुभव का लाभ भी हनुमान बेनीवाल के साथ रहेगा इस बात में कोई आती शक्ति नहीं है। कनिका बेनीवाल को इस सीट से उतरने के पीछे भी एक बड़ी राजनीतिक और साइकाइट्रिक ट्रिक भी है।  

बहरहाल, कनिका बेनीवाल अपने भाषणों से काफी चर्चा में आ रही है लोगों का ध्यान अपनी ओर बटोरने लगी हुई है लेकिन कुल मिलाकर इन सभी बिंदु पर विचार किया जाए तो हनुमान बेनीवाल एक बेहतरीन स्थिति में कैसे ले जा सकते हैं ये देखने वाली बात होगी। लेकिन खींवसर उपचुनाव को डोटासरा बनाम बेनीवाल मानना एक मूर्खता के अलावा कुछ भी नहीं है।

हालांकि सच यह भी है कि खींवसर का चुनाव मैदान कांग्रेस-भाजपा से ज्यादा रालोपा के लिए जीतना प्रतिष्ठा प्रश्न बना है। 

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