पाले (शीत लहर) से फसलों का बचाव करने के संबंध में किसानों को दी सलाह

ख़बर गवाह 

सीकर 13 जनवरी। संयुक्त निदेशक कृषि राम निवास पालीवाल ने बताया कि शीत लहर एवं पाले से सर्दी से मौसम में सभी फसलों को थोड़ा सा ज्यादा नुकसान होता है। टमाटर, मिर्च, बैंगन आदि सब्जियों, पपीता एवं केले के पौधों एवं मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनियां, सौंफ, अफीम आदि फसलों में सबसे ज्यादा 80-90 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। अरहर में 70 प्रतिशत, गन्ने में 50 प्रतिशत एवं गेंहूँ तथा जौ में 10 से 20 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।
उन्होंने बताया कि प्रायः पाला पड़ने की सम्भावना 25 दिसम्बर से 15 फरवरी तक अधिक रहती है। जब आसमान साफ हो हवा न चल रही हो और तापमान काफी कम हो जाये तब पाला पड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। दिन के समय सूर्य की गर्मी से पृथ्वी गर्म हो जाती है तथा जमीन से यह गर्मी विकिरण द्वारा वातावरण में स्थानन्तरित हो जाती है, इसलिए रात्रि में जमीन का तापमान गिर जाता है तथा कई बार तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या इससे कम हो जाता है। ऐसी अवस्था में ओस की बूंदे जम जाती है। इस अवस्था को हम पाला कहते है। पाला पड़ने के लक्षण सर्वप्रथम आक आदि वनस्पतियों पर दिखाई देते है।
फसल पर पाले का प्रभावः- पाले के प्रभाव से पौधों की कोमल टहनियां, पत्तियां एवं फूल झुलस कर झड़ जाते है। अध-पके फल सिकुड़ जाते है। उनमें झुरियां पड़ जाती है। एवं कई फल गिर जाते है। फलियों में दाने नहीं बनते हैै, बन रहे दाने सिकुड़ जाते है। दाने कम भार के एवं पतले हो जाते है। उपज की गुणवत्ता गिर जाती है। रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां, फलियां आने व बनते समय पाला पड़ने की सर्वाधिक सम्भावनाएं रहती है। अतः इस समय कृषकाें को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिये।
शीतलहर एवं पाले से फसल की सुरक्षा के उपायः- पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों,नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने के लिये फसलों को टाट, पोलिथीन, अथवा भूसे से ढ़क देवें। वायुरोधी टाटियां हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उतर-पश्चिम की तरफ बांधे। नर्सरी, किचन, गार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उतर-पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगायें तथा दिन में पुनः हटाये। जब पाला पड़ने की सम्भावना हो तब फसलों में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिये। नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम  एकदम कम नहीं होता है। जिससे तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस के नीचे नही गिरेगा और फसलोे को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
संयुक्त निदेशक पालीवाल ने बताया कि जिन दिनों पाला पड़ने की संभावना हो उन दिनों फसलों पर घुलनशील गंधक से 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) में घोल बनाकर छिड़काव करें। ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की सम्भावना बनी रहे तो छिड़काव को 15-15 दिन के अंतर से दोहराते रहें या थायो यूरिया 500 पी.पी.एम. (आधा ग्राम) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें। सरसों, गेंहू, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लोहा तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने में एवं फसलो को जल्दी पकाने में सहायक होती है। दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिये खेत की उतरी-पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच मे उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, अरडू आदि लगा दिये जावे तो पाले और ठण्डी हवा के झोंको से फसल का बचाव हो सकता है।



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